जब अनामिका का जन्म हुआ तो उसके पिता के हाथों का बोझ भारी हो गया. दो बेटियों के बोझ तले तो वो पहले से ही दबे थे ,अब अपनी तीसरी बेटी के जन्म को लेकर उन्हें दुखी होना चाहिए. एअस समाज ने उन्हें सिखाया, उन्होंने वैसा ही किया, क्योंकि बड़े सामाजिक थे. अपनी औलाद का दिल तोड़ना उन्हें ज्यादा उचित लगा, क्योंकि समाज का दिल तोड़ते तो उन्हें सज्जन कौन कहता.
एक प्रश्न- अनामिका की क्या गलती है इसमें पिता के उस प्यार से वंचित रही. क्या लड़की होना इतना बड़ा गुनाह है?
बढते वक़्त के साथ अनामिका भी बढ़ने लगी. आखिर वक़्त हर वस्तु को अपने अनुसार ढाल लेता है, उसके विद्यालय में भी पिता ने जाना उचित नहीं समझा, बढती उम्र के साथ बेटी की शिक्षा बोझ लगती थी. घर में पला तो एक कुत्ता भी मालिक के प्यार को पाता है, ये तो औलाद और माता पिता की बात है. धीरे धीरे अनामिका के अन्दर कुछ कटुता सामने लगी. पर आखिर माता पिता थे कैसे नफरत करती ? माता जी भी पिता जी के हाँ में हाँ मिलाती , आखिर पति का कहना न मानती तो पत्निव्रता कहने में चूक हो जाती . उसके दिल में एक और सवाल घर करने लगा- वाकई लड़की न होने से बेहतर व्यक्ति एक कुत्ते का जन्म ले तो बेहतर है. क्या ये उचित नहीं? ...........
- शिखा "परी"