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Wednesday, October 2, 2019

केवल साँवली लड़कियाँ

रात के अंधेरे में नहीं जन्मी

उसका अस्तित्व भी वैसा ही है जैसा आम लड़कियों का होता है

रिश्ते की बात जब आती है साँवली हो बोलके पीछे कर दिया गया उसे,

ठुकरा दिया गया बिना किसी कसूर के

रंग देखके उसे नसीहत दी गई उबटन, मुल्तानी मिट्टी, मलाई की मालिश से लबरेज़ किया गया उसे

वो फिर भी नहीं निखरी,उसने अपनी चमड़ी ही उधेड़नी चाही एक दिन

खून से लथपथ हो गई, मुझे उसके बहे खून का बदला चाहिए इस समाज से

उसकी पीठ पे लोगों ने तानों के कोड़े बरसाए काली,साँवली, बदसूरत इन शब्दों से उसकी पीठ को रंगा गया

वो फंदे पे लटकाई गई ,कठघरे में खड़ी की गई फ़ैसला समाज सुनाता हर बार

हल्के रंग के कपड़े पहनने के लिए सबने कहा

वो फिर भी उस कसौटी पे खरी नहीं उतरी

वो चेहरा छीलने लगी नोचने लगी, खुद के गाल पर उसने थप्पड़ रसीद दिए

उसे काली ,साँवली होने की किरकिरी होने लगी।

Saturday, July 12, 2014

क्या कहूँ



आजकल वर्चुअल लाइफ(virtual life) का भूत सब के सर पे चढ़ के बोल रहा है ,इसका मुख्य कारण फेसबुक(facebook) ,व्हाट्सएप (whatsapp)जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स से बढ़ावा मिल रहा है .लोग अब अपने दोस्तों से मिलने जुलने की जगह 5 या 6 महीने के बाद फेसबुक से हाई कहना पसंद करते हैं,हे डूड(Hey Dude)!!( ,वास अप? (Wassup?) जैसे शब्दों के प्रयोग से लोग आज खुद को बढती भागती दुनिया का हिस्सा बड़े गर्व से मानते हैं. घरेलु महिलायें भी जो परदे के पीछे छुपी रहती थी आज फेसबुक व्हाट्स अप के ज़रिये खुद की इच्छाओं को प्रदर्शित कर रही हैं, जहाँ पहले साड़ी ,सलवार सूट में बढ़ने वाली महिलाएं आज जीन्स टी –शर्ट पहन के खुद को नयी सदी के साथ बढ़ता देख रही हैं, यानी परदे के पीछे इंसान कुछ और है दिखा कुछ और रहा है ,अपनी तस्वीरों के ज़रिये इस महंगी, भागती दौड़ती ज़िन्दगी में भी वो खुद को खुश दिखने का नाटक कर रहा है,एक तरफ महंगाई मार रही है उसे पर फेसबुक पे वो दो पल के लिए ख़ुशी पोस्ट कर रहा है......यानी हैं कुछ और दिखा कुछ और रहे हैं ........सही भी है आखिर इस महंगी भागती दौड़ती दुनिया में इंसान करे भी तो क्या करे??हाहाह









Monday, May 12, 2014

फिसलता वक़्त



वक़्त एक ऐसी पहेली है जिसे कोई पकड़ ना पाया ना ही कोई भांप पाया ....कभी कभी लगता है वक़्त सामने होता तो क्या कहती कभी कभी सोचती हूँ वक़्त उस समय मिल जाता तो आज ये न करती, आज वो ना होता कोई नहीं जानता वक़्त किसी को कब कहाँ से कहाँ ले जा सकता है ,किस वक़्त किस्से आपकी मुलाक़ात हो जाये किस पल हम क्या खो दें किस पल हम क्या पा लें कोई नहीं जानता ...कोई नहीं ..............
वक़्त के साथ इंसान सब भूल जाता हैं पुरानी बाते  ,पुराने ख्याल ,....वक़्त हर एक पहेली को धीरे धीरे सुलझाता है रेत की तरह भागता ये वक़्त भाग ना जाये अगर वक़्त अच्छा है तो खुल के जी लो बुरा है तो सह लो क्यूंकि ये वक़्त की दौड़ है जहाँ सब हारते गए सिर्फ और सिर्फ वक़्त जीतता आया है वक़्त जीतता जाएगा ...................................................................................................
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Tuesday, April 8, 2014

मज़हब



मज़हब –एक ऐसा शब्द जो किसी आम इंसान की ज़िन्दगी बदलने के लिए काफी है ,क्यूंकि ये हमारा मज़हब है जो किसी को मंदिर तो किसी को मस्जिद भेजता है, हमारा मज़हब हमें सिखाता  है की हम बचपन से गीता पढेंगे ,कुरान पढेंगे या  फिर बाइबिल ??
मज़हब के नाम पे लोग दंगे फसाद करते हैं एक दूसरे को मारने काटने के लिए तैयार हो जाते हैं ,कोई तलवार निकाल लेता है तो कोई चाक़ू ,पर इतनी लडाई आखिर क्यूँ ...लोग कहते हैं खुदा एक है फिर भी राम बड़े या अल्लाह ये फैसला क्यूँ लिया जाता है..... हमेशा इंसान की एक ही फितरत होती है उसे रहने  के लिए एक घर ,खाने के लिए रोटी दाल और पहनने के लिए कपड़े  ही चाहिए होते हैं फिर चाहे वो हिन्दू हो ,सिख हो, मुसलमान हो या फिर इसाई
सबको खुदा ने ही बनाया है कोई धरती  पर हमेशा के लिए नहीं आया है, इतनी नफरत क्यूँ आखिर??
 भारत तो आज़ाद है पर यहाँ की सोच तो आज भी वहीँ हैं जहाँ अंग्रेजों ने इस सोच को पैदा करके इसका विकास किया मतलब नीव उन्होंने रखी बिल्डिंग बनाने का ठेका हमने लिया है वाह  भाई वाह !!!! काबिले तारीफ मेरे भारत के लोगों....  सोच को थोडा सा ऊपर ले जाइये....becz India  is said to be  a Country where ….!!!Every one is equal..
शिखा "परी"

Thursday, August 15, 2013

PARI: क्या हम आज़ाद है???

PARI: क्या हम आज़ाद है???: अभी –अभी 15 अगस्त बीता है,हमने 67 साल पूरे कर लिए आजादी के देखके बहुत ख़ुशी होती है. सबके मुंह से सुनके बहुत अच्छा लगता है की अब हम आज़ाद...

PARI: क्या हम आज़ाद है???

PARI: क्या हम आज़ाद है???: अभी –अभी 15 अगस्त बीता है,हमने 67 साल पूरे कर लिए आजादी के देखके बहुत ख़ुशी होती है. सबके मुंह से सुनके बहुत अच्छा लगता है की अब हम आज़ाद...

क्या हम आज़ाद है???


अभी –अभी 15 अगस्त बीता है,हमने 67 साल पूरे कर लिए आजादी के देखके बहुत ख़ुशी होती है. सबके मुंह से सुनके बहुत अच्छा लगता है की अब हम आज़ाद हैं, अंग्रजों की गुलामी से हमें आजादी मिल गयी है , पर सोचने वाली बात है क्या हम सच में पूरी तरह आज़ाद हैं??
 इस प्रश्न पे मुझे संदेह होने लगता है, आज भी हम रोटी-दाल, छोले भटूरे से ज्यादा पिज़्ज़ा,बर्गर खाते हैं पसंद भी करते हैं, लंदन से आई कटरीना को शीला बनाके उसकी जवानी पे थिरकते हैं, अमेरिका की सनी लेओनी की खूबसूरती  देखके तमाम लड़कों का दिल धड़क उठता है,वेस्टर्न कल्चर या फिर उसी में ढले लोगों की इज्ज़त इतनी ज्यादा बढ़ रही है इंडिया में की बस पूछिए मत. फसबुक ,ट्विटर पे भी हम “वासप”,”हओव्स यू डूड”चिक्क”,चैम्प”,इन शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो नहीं करते उन्हे भी हम अपने अंदाज़ में गालिया देते हैं जैसे की ऐर्लेस,डाउनमार्केट आदि कहके गाली देते हैं. कभी-कभी शक होता है क्या हम सचमुच स्वतंत्र हैं या फिर अभी भी अंग्रेजों की गुलामी कर रहे हैं. इंडिया में आज भी तमाम ऐसी लड़कियां हैं जिन्हे काम की सख्त ज़रूरत है, ऐसा नहीं है इंडिया के लोगों की यहाँ खूबसूरती की कमी है या फिर यहाँ का खाना ख़राब है ,क्यूँ हम अंग्रेजों की चमक –धमक से इतना प्रभावित हैं?...
एक तरफ हम कहते हैं “UNITED WE STAND DIVIDED WE FALL”.पर फिर भी आपस में भेदभाव करते हैं, भेदभाव  तो हम सब में हैं अगर कोई मुंबई चला गया तो उसकी वाह –वाही होती है कोई यूपी या बिहार जाता है तो उसे देहाती कहा जाता है, दोस्तों सिर्फ कहने से कुछ नहीं होगा हमे खुद को सच में आज़ाद करना होगा इन झूठी वाह –वाही  से इन झूठी  चमक –धमक से तभी हम सच में आज़ाद होंगे..... साथ में बोले वन्दे मातरम ..!!!!!!!!

Sunday, March 24, 2013

PARI: ज़मीर बिक चुका है

PARI: ज़मीर बिक चुका है: ज़मीर बिक चुका है हमारा और अमीर बनने की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं खुद पर यकीं  नहीं और   यकीन कर रहे हैं .. हम बिक चुके है दुनिया के बा...

ज़मीर बिक चुका है

ज़मीर बिक चुका है हमारा और अमीर बनने की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं खुद पर यकीं  नहीं और   यकीन कर रहे हैं .. हम बिक चुके है दुनिया के बाज़ार में  इक सामान  की  तरह फिर भी इन्सान बनने  की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं … 
- परी शिखा चन्द्र 

Sunday, February 26, 2012

gardish

गर्दिश में चल रहें हमारे सितारे हैं
उन्हें क्या याद करे जो न थे न हमारे हैं




जो न थे न हमारे हैं
वो चला गया जिसे जाना था



रह गया वो जिसके साथ हम अनजाने थे
कोई नहीं था ये सोचा था हमने पर

पता नहीं था की वो बेगाने ही हमारे हैं
वो बेगाने ही हमारे हैं

Thursday, February 16, 2012

कोई गिला नहीं

खुश हूँ बहुत आज क्योंकि
दुखी होने के लिए कोई दुःख बचा नहीं

कोई चला गया तो चला जाये
मुझे अब तक कोई अपना मिला नहीं

क्यूं किसी के लिए बहाऊँ आँसूं
जो चला गया उसे अब तलक कोई गिला नहीं

जाने वाले को कौन रोक पाया है
जाये जिसे जाना है जहाँ, मुझे कोई शिकवा नहीं

साथ जो दे दे दो पल मेरा वो
चार पलों के बाद रहा नहीं

- शिखा "परी"

Tuesday, January 17, 2012

"मेरी माँ"

हमने यह एक फिल्म में सुना था
आज खुश तो बहुत होगे तुम ..मेरे पास बँगला है गाड़ी है तुम्हारे पास क्या है ......................
"मेरे पास माँ हैं "


"माँ" कितना सुन्दर शब्द है दिल को छू देने वाला शब्द। माँ एक नए जीवन को अपने गर्भ में नौ महीने रखती है । वो ख्वाबों को हकीकत में बदलती है।
माँ को करीब से मैंने तब जाना जब पिता कि मृत्यु हुयी। ऊनकी छवी को बहुत करीब से जाना।
" मेरी माँ प्यारी माँ भोली माँ "

- शिखा "परी"