परी के पन्ने
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Sunday, March 24, 2013
ज़मीर बिक चुका है
ज़मीर बिक चुका है हमारा और अमीर बनने की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं खुद पर यकीं नहीं और यकीन कर रहे हैं .. हम बिक चुके है दुनिया के बाज़ार में इक सामान की तरह फिर भी इन्सान बनने की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं …
- परी शिखा चन्द्र
2 comments:
Kailash Sharma
said...
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
March 24, 2013 at 8:28 PM
sangeeta kakriya said...
acha likha hai
March 28, 2013 at 9:50 PM
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बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
acha likha hai
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