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Sunday, March 24, 2013

ज़मीर बिक चुका है

ज़मीर बिक चुका है हमारा और अमीर बनने की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं खुद पर यकीं  नहीं और   यकीन कर रहे हैं .. हम बिक चुके है दुनिया के बाज़ार में  इक सामान  की  तरह फिर भी इन्सान बनने  की नाकामयाब सी कोशिश कर रहे हैं … 
- परी शिखा चन्द्र 

2 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

sangeeta kakriya said...

acha likha hai