आजकल
वर्चुअल लाइफ(virtual life) का भूत सब के सर पे चढ़ के बोल रहा है ,इसका
मुख्य कारण फेसबुक(facebook) ,व्हाट्सएप (whatsapp)जैसे सोशल नेटवर्किंग
साइट्स से बढ़ावा मिल रहा है .लोग अब अपने दोस्तों से मिलने जुलने की जगह 5
या 6 महीने के बाद फेसबुक से हाई कहना पसंद करते हैं,हे डूड(Hey Dude)!!(
,वास अप? (Wassup?) जैसे शब्दों के प्रयोग से लोग आज खुद को बढती भागती
दुनिया का हिस्सा बड़े गर्व से मानते हैं. घरेलु
महिलायें भी जो परदे के पीछे छुपी रहती थी आज फेसबुक व्हाट्स अप के ज़रिये
खुद की इच्छाओं को प्रदर्शित कर रही हैं, जहाँ पहले साड़ी ,सलवार सूट में
बढ़ने वाली महिलाएं आज जीन्स टी –शर्ट पहन के खुद को नयी सदी के साथ बढ़ता
देख रही हैं, यानी परदे के पीछे इंसान कुछ और है दिखा कुछ और रहा है ,अपनी
तस्वीरों के ज़रिये इस महंगी, भागती दौड़ती ज़िन्दगी में भी वो खुद को खुश
दिखने का नाटक कर रहा है,एक तरफ महंगाई मार रही है उसे पर फेसबुक पे वो दो
पल के लिए ख़ुशी पोस्ट कर रहा है......यानी हैं कुछ और दिखा कुछ और रहे हैं
........सही भी है आखिर इस महंगी भागती दौड़ती दुनिया में इंसान करे भी तो
क्या करे??हाहाह
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Saturday, July 12, 2014
Monday, May 12, 2014
फिसलता वक़्त
वक़्त एक ऐसी पहेली है जिसे कोई पकड़ ना पाया ना ही कोई भांप पाया ....कभी कभी
लगता है वक़्त सामने होता तो क्या कहती कभी कभी सोचती हूँ वक़्त उस समय मिल जाता तो
आज ये न करती, आज वो ना होता कोई नहीं जानता वक़्त किसी को कब कहाँ से कहाँ ले जा
सकता है ,किस वक़्त किस्से आपकी मुलाक़ात हो जाये किस पल हम क्या खो दें किस पल हम
क्या पा लें कोई नहीं जानता ...कोई नहीं ..............
वक़्त के साथ इंसान सब भूल जाता हैं पुरानी बाते ,पुराने ख्याल ,....वक़्त हर एक पहेली को धीरे
धीरे सुलझाता है रेत की तरह भागता ये वक़्त भाग ना जाये अगर वक़्त अच्छा है तो खुल
के जी लो बुरा है तो सह लो क्यूंकि ये वक़्त की दौड़ है जहाँ सब हारते गए सिर्फ और
सिर्फ वक़्त जीतता आया है वक़्त जीतता जाएगा ...................................................................................................
.............................................................................................................Tuesday, April 8, 2014
मज़हब
मज़हब –एक ऐसा शब्द जो किसी आम इंसान की ज़िन्दगी बदलने के लिए काफी है ,क्यूंकि
ये हमारा मज़हब है जो किसी को मंदिर तो किसी को मस्जिद भेजता है, हमारा मज़हब हमें
सिखाता है की हम बचपन से गीता पढेंगे
,कुरान पढेंगे या फिर बाइबिल ??
मज़हब के नाम पे लोग दंगे फसाद करते हैं एक दूसरे को मारने काटने के लिए तैयार
हो जाते हैं ,कोई तलवार निकाल लेता है तो कोई चाक़ू ,पर इतनी लडाई आखिर क्यूँ
...लोग कहते हैं खुदा एक है फिर भी राम बड़े या अल्लाह ये फैसला क्यूँ लिया जाता है.....
हमेशा इंसान की एक ही फितरत होती है उसे रहने के लिए एक घर ,खाने के लिए रोटी दाल और पहनने के
लिए कपड़े ही चाहिए होते हैं फिर चाहे वो
हिन्दू हो ,सिख हो, मुसलमान हो या फिर इसाई
सबको खुदा ने ही बनाया है कोई धरती पर
हमेशा के लिए नहीं आया है, इतनी नफरत क्यूँ आखिर??
भारत तो आज़ाद है पर यहाँ की सोच तो आज
भी वहीँ हैं जहाँ अंग्रेजों ने इस सोच को पैदा करके इसका विकास किया मतलब नीव
उन्होंने रखी बिल्डिंग बनाने का ठेका हमने लिया है वाह भाई वाह !!!! काबिले तारीफ मेरे भारत के
लोगों.... सोच को थोडा सा ऊपर ले
जाइये....becz India is said to be a Country where ….!!!Every one is equal..
शिखा "परी"
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