रात के अंधेरे में नहीं जन्मी
उसका अस्तित्व भी वैसा ही है जैसा आम लड़कियों का होता है
रिश्ते की बात जब आती है साँवली हो बोलके पीछे कर दिया गया उसे,
ठुकरा दिया गया बिना किसी कसूर के
रंग देखके उसे नसीहत दी गई उबटन, मुल्तानी मिट्टी, मलाई की मालिश से लबरेज़ किया गया उसे
वो फिर भी नहीं निखरी,उसने अपनी चमड़ी ही उधेड़नी चाही एक दिन
खून से लथपथ हो गई, मुझे उसके बहे खून का बदला चाहिए इस समाज से
उसकी पीठ पे लोगों ने तानों के कोड़े बरसाए काली,साँवली, बदसूरत इन शब्दों से उसकी पीठ को रंगा गया
वो फंदे पे लटकाई गई ,कठघरे में खड़ी की गई फ़ैसला समाज सुनाता हर बार
हल्के रंग के कपड़े पहनने के लिए सबने कहा
वो फिर भी उस कसौटी पे खरी नहीं उतरी
वो चेहरा छीलने लगी नोचने लगी, खुद के गाल पर उसने थप्पड़ रसीद दिए
उसे काली ,साँवली होने की किरकिरी होने लगी।
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