MY WINNING POETRY.. IN ENGG. COLLEGE COMPETITION..
राहें हो गयीं खूनी
हो जाओ अब जुनूनी
उठाओ अब कोई तूफ़ान
बट गया समाज टुकड़ों-टुकड़ों में
अब क्या रह गया भ्रष्टाचार के चीथड़ों में
धंस रहा है भारत का भविष्य कीचडों में
अमीरों को दिया जा रहा सम्मान
ग़रीबों का न रहा कोई मान
ऐसा हो गया है मेरा भारत महान
कंधे से कन्धा मिलाकर चले वाली नारियों
आसुंओं का सागर तुम न पियो
बढ़ो आगे और संभालो अपना जहान
ओ छोटे- छोटे बच्चों चलो तुम गाँधी नेहरू की राह
खड़े करो खुशियों के किले
जिसमें रहें अमन और शान्ति
बेपरवाह,
बचा सको तो बचा लो अपना मान
मिट्टी में न मिल मिल जाये
ये सोने की खान
- शिखा "परी"
3 comments:
वह!!! बचा सको तो बचा लो अपना मान मिट्टी में ना मिल जाये यह सोने खान.... बहुत खूब कभी समय मिले तो आयेगा मेरे भी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
bhut achha likha hai tmne....... congrats!!!!!!!!! dear...........
अच्छे शब्द,
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