आज ही के दिन मैंने अपने पापा को खोया था। कितना तकलीफदेह था वो दिन। उन दिनों मेरी मम्मी भी बहुत बीमार थी, अब वो ठीक हैं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे , कुछ दिनों बाद मैंने लिखा था उन दिनों -
"धूप सी जमी है मेरी साँसों में, कोई चाँद को बुलाये तो रात हों" मुझे नहीं मालूम था कि इतना मजबूर कर देगा मुझे मेरा जीवन कि अपने हाथों से अपने पिता कि चिता को आग दूँगी और अपनी माँ से कहूँगी कि मैं तो जश्न में गयी थी।(जिस दिन पापा हम सब को छोड़ के गए उसी दिन मम्मी को , सात दिन अस्पताल में आई .सी. यूं. चेंबर में रहने के बाद छुट्टी मिली थी, और अब तक वो अपने पूरे होशो हवाश में नहीं हैं वो दिमाग की इक बीमारी से पीड़ित हैं और डॉक्टर ने मना किया है उनको इस घटना के बारे में बताने को )
पिता को खोने का ग़म करूँ या माँ को पाने का अहसास पता नहीं ये कौन सी परीक्षा है मेरी, आज पापा की कमी महसूस होती है जब जेब से पैसे निकल के कॉलेज भाग जाया करती थी, अपने जन्मदिन पर नया लेपटोप की जिद की थी। अपना मनपसंद भोजन बनवाने का मन होता था,पापा के साथ शान से गाड़ी में घूमती थी। और पूछती थी- "ये कौन सी जगह है पापा? " पुराने गाने पापा के साथ गुनगुनाते थे, उनके "कालू" कहने पर रूठ जाया करते थे और मन ही मन हँसते थे। वाकई पिता की याद को भुला पाना पानी में आग जलने का काम है।
11 दिसंबर 2010 मैंने अपने पिता को खो दिया, उनके हाथों का साया मेरे सर से हट गया। पापा की कमी का अंदाजा कोई लगा नहीं सकता, उनका प्यार से कहना "सूतू मेरा" कैसे भूल जाऊँ ? उनकी डांट, उनका प्यार, उंसी हिम्मत, पापा की हर एक बात मुझे अपनी सांस के साथ आती है। 21 वर्ष में अपने पापा को खो दिया मैंने, ऐसा ईश्वर ने मेरे साथ क्यूं किया? इस सवाल का जवाब ढूंढ रही हूँ मैं, मुश्किल है जवाब मिलना पर फिर भी उम्मीद है कि शायद किसी न किसी दिन जवाब मिलेगा।
मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया, बरबादियों का सोग मानना फिजूल था, बरबादियों का जश्न मनाता चला गया।
- शिखा वर्मा "परी"
( लेखिका इंजीनियरिंग के तृतीये वर्ष में अध्यनरत हैं )
17th Dec. 2010
8 comments:
पिता के खोने का ग़म क्या होता है इसे बयाँ करना मुश्किल है |हिम्मत से काम लीजिये ......
ओह्ह... आपके गम को महसूस कर सकता हूँ... आँखों में आंसू आ गए आपकी व्यथा सुनकर... वाकई इंसान के लिए ज़िन्दगी में माँ-बाप से बढ़कर कोई नहीं हो सकता है... और जो लोग जितने करीब होते हैं, उनके जाने के बाद उनकी याद उतनी ज्यादा आती है...
हाँ , पापा का इतनी जल्दी जाना बहुत दुखद है , बस यूं समझो उनकी यात्रा आपके साथ यहीं तक थी , अब उनके सपनों को ध्यान में रखते हुए जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा बनाए रखना , कभी मैंने लिखा था ...
वक्त ने हमको चुना
चोट खाने के लिए
हिला रहा है कोई
हमको जगाने के लिये
उठो , अहतराम कर लो
ताल मिलाने के लिये
poori rachna padhne ke liye mere geet-gazal vaale blog par jaa sakti hain ...
सही कहा मै तो आज भी ४५ साल की उम्र में तेरह साल पहले अपने पापा का खोना नहीं भूल पाया | आज भी याद आती है |
आप के इस दर्द को आप से ज्यादा कोई नही महूस कर सकता..... दुआ करती हूँ की ईश्वर आपको हिम्मत दे खुद को और अपने परिवार को सम्हालने के लिए.....
मार्मिक पोस्ट।
मैने जब अपने पापा को खोया था तो मैं 17 वर्ष का था। जान सकता हूँ आपका दर्द। आपने तो मुझे भी गमगीन बना दिया।
मार्मिक पोस्ट!
हौसला बनाये रखने और आगे बढ़ने के लिये मंगलकामनायें।
papa . . . . i miss my papa. papa word khe aj hume 7 sal ho gaye. maa ki chikhe or choti bahan ki vo dard se bahri va papa ko chahne ki lalak or uska bar bar chilana "bhaiya papa ko uthao na uthao na papa se kaho mere se bat kare" uska hum se liat lipat ke rona or humari umr matr 14 sal. ghar me papa ke antim sanskar ke pese b nahi. apno ne tk sath chod diya. bt hume humare god ji par pura visvash tha. hum to itne badnasib ki apni akho se papa ki mot ke ashu b nahi nikal paye. hum rote to maa or bahan ko kon samalta. us ahsash ko hum baya nahi kr sakte humare rom rom khade ho jate he. bt sb sahi ho jata he. god is great u also enjoy your life. hum yo enjoy sabd se hi anjan he. sorry to heart u. apki life bahut dukh se gujri he. but if u dont mind i wany to say u something for your father. hum humesa apne papa ko khat likhte he or use haridvar ganga meya ke yha bej dete he. humari khushi me or dukh me hum papa ko jarur samil karte he . i love u papa....i miss.......you papa. and .....sorry papa. apka apna AK MUSAFIR. govind singh verma. rajasthan. govindverma1988@gmail.com
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