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Wednesday, May 4, 2011

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी तेरी गोद में हर शाम गुजरती रही

मैं ठहरी रही तू गुजरती गयी

तेरे आँचल के छाँवमें

मैं खुद को बहलाती रही

और तू

हवा बनकर मुझे सहलाती रही।

मैं तुम्हें कभी ये कह न पायी

ऐ ज़िन्दगी तेरी याद बड़ी आएगी

तू छोड़ देगी मेरा साथ जिस दिन

उस दिन मेरी रूह कांप जाएगी

तमन्ना के आँचल में

सर रखकर

मैं पूछती हूँ

ऐ ज़िन्दगी तू कब तलक तरसाएगी।

मैं तुम्हें नाराज़ करना नहीं चाहती

पर हकीकत है

की अनजाने में

तू मेरा दिल तोड़ते आयी है

ज़िन्दगी तेरी गोद में

मेरी हर शाम गुजरती आयी है।

ज़िन्दगी रुक जा

आज मेरे सपनो को चकनाचूर मत कर

तू बेवफा बनकर मेरा दिल तोड़ते आयी है

इक बार ही सही वफ़ा कर दे मेरे साथ

की मैं भी कह सकूँ सबसे

की ज़िन्दगी मेरे साथ मय रंग लाई है।

आज मैं क्या कहूँ

तुमसे ज़िन्दगी

की आज ही तुने मेरी दुनिया लुटाई है

मौत का नाम देकर

मेरे अरमानों की कश्ती डुबाई है।

- शिखा वर्मा "परी"

12nd July, 2010

2 comments:

Shikha Kaushik said...

तुमसे ज़िन्दगी

की आज ही तुने मेरी दुनिया लुटाई है

मौत का नाम देकर

मेरे अरमानों की कश्ती डुबाई है

bahut sundar .likhtee rahiye aise hi .best of luck .

Bhupendra Yadav said...

Liked it...
Nice poem...