ये कविता मेरे पिता के लिए है जिन्होंने 11 Dec. , 2010 को दुनिया छोड़ दी!
वो छोड़ गए अपनी बातें
उनका अहसास है अब तो मेरे साथ
क्यों रूठ गए हैं आप आज
इतना कि मनाना भी अब नहीं कम आएगा
आसमान में तारा बनके क्या देख रहे हैं आप
आपके बच्चे बुलाते हैं आपको
पापा आ जाईये एक बार
कि
हम एक बार आपसे कह लें
अपने दिल कि बात
आपके बिना अधूरा है जीवन
माँ कि आँखें ढूंढती हें आपको
आ जाओ पापा
फिर भले ही रूठ जाना यहाँ आके
एक बार कह दो पापा "बहादुर बच्चे"
फिर नहीं चाहिए किसी का साथ
होगी मुलाकात आपसे
किसी न किसी रूप में
ये अहसास है हमको हम इंतज़ार करेंगे
उस पल का जब तक हमारी आँखें
आपका रास्ता ताकती रहेंगी !!
- शिखा वर्मा "परी" , कानपुर
(कवियत्री इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में अध्यनरत हैं )
6 comments:
पापा साथ तो बहुत हिम्मत देता ही है ...शिखा दी..... उन्हें नमन
आँखें नम हुई यह कविता पढ़कर शिखा....... पापा की यादों और शब्दों को अपना संबल बना हमेशा बहादुर बनी रहो..... शुभकामनायें
भावुक कर दिया...
पिता जी की पुण्य आत्मा को नमन!!!
भावुक कर दिया...
पिता जी की पुण्य आत्मा को नमन!!!
Shikha bahut bhavuk kar diya hai .aap sahas se aage badhiye .best of luck .
US VEER KO MERA NAMAN.
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ब्लॉग समीक्षा की 13वीं कड़ी।
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